यात्रा
संस्मरण – मेरी स्वीडन यात्रा
“Look at the sky. We are not alone. The whole universe is
friendly to us and conspires only to give the best to those who dream and work
“ – Dr APJ Kalam
“आकाश की ओर देखो। हम अकेले नही है। पूरे ब्रह्मांड
हमारे लिए मैत्रीपूर्ण है और केवल सपना और काम करने वालों को सर्वश्रेष्ठ देने के
लिए षडयंत्र करता है।“ – डॉ एपीजे कलाम
बचपन से हिंदी फिल्मों में स्विट्जरलैंड
और पेरिस की शूटिंग देखकर मन मे एक सपना बना लिया कि यहां एक बार जरूर जाना है । एक
दिन मेरे बचपन के दोस्त मनोहर का फ़ोन आया कि स्वीडन घूमने आ जा और यहां से यूरोप
के दूसरे देशों में जाएंगे । विदेश जाने के लिए मैंने अपना पासपोर्ट 16 वर्ष पहले ही बना रखा था लेकिन कभी जाने
का मौका नही मिला । मेरा दोस्त मनोहर अपनी कंपनी की तरफ से विदेश डेपुटेशन में जाता रहता था । इस बार स्वीडन लगभग दो साल के
लिए गया था । इससे पहले भी वह लंदन में दो वर्ष रहा था तब भी उसने आने का आफर दिया
था । मैंने भी उससे कई बार कहा था कि एक बार पासपोर्ट में ठप्पा तो लगवा दे , लेकिन मैं हर बार किराया पूछता और वीज़ा के बारे में पता करता
और फिर शांत हो जाता । मनोहर ने कई बार कहा कि किराया का इंतजाम कर ले, यहां रहना खाना पीना तो है ही । LIC में
रहकर, जहां कोई ऊपरी इनकम नही है , साथ ही आपको अपना मकान चाहिए ( जो कि
बिना हाउसिंग लोन के संभव नही है ) , बच्चो की अच्छी पढ़ाई चाहिए , मोटर साईकल और कार भी चाहिए , ऐसे में आप विदेश जाने की सोच भी नही
सकते ।
फिर भी मैंने सोचा, मेरी हिम्मत तो देखिए ।
इस बार जब स्वीडन से मनोहर ने कहा कि एक
देश का वीजा लेने के बाद हम यूरोप के बाकी देशों मे
भी घूम सकते है । उसने अपना प्लान बनाया कि हम 16 देशो में जाएंगे |
मैंने
कहा - इसमें पेरिस और स्विट्जरलैंड तो है ही नही ।
उसने
कहा – मै वहां जा चुका हूं इसलिए दुबारा वहां नही
जाऊंगा ।
“देख
बिल्लू ( मनोहर के बचपन का नाम ) में कही जाऊं या नही लेकिन
पेरिस और स्विट्जरलैंड तो जरूर जाऊंगा क्योकि यहां जाना मेरा एक सपना है “ - मैने कहा |
“ठीक
है, तो वहां के लिए मैं तेरा टूर पैकेज
करवा दूंगा बाकी जगह
हम साथ घूमेंगे “ - मनोहर ने कहा ।
पैसो
का इंतजाम और पत्नी की सहमति - इतना
सुनते ही मैं पैसे के इंतजाम के बारे में सोचने लगा । पैसो
के इन्तजाम के साथ साथ पत्नी की सहमति भी आवश्यक थी । पत्नी से भी चलने के लिए
कहना था , मन मे डर था कि कही
वह हां ना कह दे ।
मैंने
अपनी एकमात्र
धर्मपत्नी तुलसी से कहा – “ सुनो, बिल्लू
का फ़ोन आया है, स्वीडन घूमने के लिए बुला रहा है ।“
“आने
जाने का खर्चा करेंगे, तो हम तैयार है । अभी तो मकान बनाया है, पैसा कहां है आपके पास “ - तुलसी ने कहा |
मैंने
कहा - सोसाइटी से लोन ले लूंगा ।
“कोई
जरूरत नही है लोन लेने की । वैसे ही कम लोन है क्या, जो और लोन लोगे” - तुलसी ने थोड़ा
गुस्से से कहा ।
और
फिर सैलरी से कटौती होगी , हम
खाएंगे क्या ?
एक
तरफ घरबार था दूसरी तरफ सपना । तुलसी की बात तो सही थी । तुलसी ने फिर कहा
कि मैं बच्चों के बगैर नही जाऊंगी ।
मैं
मन ही मन पैसो का हिसाब लगाने लगा कि एक गुणा चार कितना होगा । फिर सोचा कि जब लोन
ही लेना है तो डर किस बात का । अब समस्या एक और आयी कि पुत्र मानव का पासपोर्ट नही बना था । अब पुत्री श्रुतिका को साथ ले जाते और मानव को छोड़ जाते तो, ये
भी अच्छा नही था । इस
तरह जाने और छोड़ने के चर्चा होती रही ।
अंत
मे, तुलसी ने अपने तरकश से अंतिम तीर निकाला और कहा – “आपका बचपन से सपना है वहा
जाने का , हमारा ऐसा कुछ नही है
। हम फिर बाद मे सब साथ चलेंगे “ |
मन तो नही था अकेले जाने का पर, सपने और परिवार में , सपना हावी हो गया ।
टिकट और वीज़ा का सारा इन्तजाम मनोहर ने
स्वीडन से कराया ।
पहला
वीज़ा - पहली बार विदेश का
वीजा मिलना थोड़ा मुश्किल होता है । खासकर जब आप अकेले जा रहे हो । वीज़ा की सारे कागजात मनोहर ने एक एजेंट
के माध्य्म से करवा दिए थे । दिल्ली में वीज़ा के ऑफिस में कागजात के साथ इंटरव्यू भी लिया जाता है ।
मनोहर को काफी अनुभव था, इसलिए सारे कागजात पूरे थे । इंटरव्यू
में काफी सवाल जवाब के बाद उन्होंने पूछा कि आप अपने दोस्त के पास घूमने जा रहे हो, आप साबित करो कि वो आपका दोस्त है ।
मैंने
कहा - कैसे करूं ?
उन्होंने
कहा - कोई साथ की फ़ोटो दिखाओ ।
मैंने
कहा - इस समय तो नही है ।
उन्होंने
कहा - व्हाट्सएप की चैटिंग दिखाओ ।
व्हाट्सएप
में मनोहर सिंह बिष्ट का नाम मैंने बिल्लू लिखा था | बिल्लू का नाम वो कैसे पहचानते , खैर मैने नाम बदलकर चैटिंग दिखा दी |
10 दिन
बीतने के बाद भी जब वीज़ा नही आया तो मुझे चिंता होने लगी । मैंने लोगो से कहना भी
शुरू कर दिया था कि में यूरोप जा रहा हूँ ।
मनोहर
ने कहा - जब तक वीज़ा न आ जाये , तब तक लोगो से मत कहना
, वरना नज़र लग जाती है । मेरा भी पहला वीज़ा नही
लगा पाया था ।
ये
सुनकर थोड़ा मैं डर गया ।
मनोहर
ने ऑनलाइन शिकायत कर दी कि अभी तक वीज़ा नही मिला है ।
एक
दिन मैं छुट्टी में था तो एक फ़ोन आया -
“आई एम फ्रोम स्वीडिश एम्बेस्सी , हैव यू अप्लाइड फॉर स्वीडिश
वीज़ा” ?
मैंने
कहा – ‘यस’
आई
वांट टेक योर इंटरव्यू , आर
यू रेडी ?
‘यस आई एम रेडी’ – मैंने
कहा |
फिर
उसने मुझसे लगभग 45 मिनट्स
तक सवाल जवाब किये जिसमे मनोहर के बारे में, उसके घर के बारे में , उसके बच्चों के बारे में, मेरे घर और बच्चों के बारे में, नौकरी के बारे में, मेरी सारी संपत्ति के बारे में थे । अंत
मे एक सवाल किया - आप स्वीडन से वापस आने के बाद क्या करोगे ?
“अपनी
LIC की नैकरी करूँगा” -
मैने कहा ।
और
फिर तीन दिन बाद वीज़ा आ गया ।
जाने
से पहले घबराहट - दिनांक 31 मई 2017
दिल्ली से 10:30
बजे की उड़ान थी , मुझे
स्वीडन में गुटेनबर्ग जाना था । मुझे
तीन फ्लाइट चेंज करनी थी। पहली दिल्ली से हेलसिंकी, दूसरा हेलसिंकी से स्टॉकहोम और तीसरा स्टॉकहोम से गुटेनबर्ग
| यात्रा का समय लगभग 16 घंटे था | जाने से पहले उस रात
को मैं सो नहीं पाया। एक अजीब सी बेचैनी थी मन में कि मैं कैसे जाऊँगा लेकिन मनोहर ने सारा इंतजाम ठीक से कर
रखा था |
मैं
वहां के लगभग 9:30 बजे
शाम गुटेनबर्ग पहुंच गया | एयरपोर्ट पर मुझे मनोहर लेने आया तो मुझे अजीब सी खुशी हुई |
साफ
सफाई एवं हरियाली - मनोहर
ने घूमने की सारी प्लानिंग पहले से ही बना रखी थी
दूसरे
दिन हम गुटेनबर्ग घूमने के लिए निकले , चारो तरफ साफ सफाई
और हरियाली ही हरियाली थी, ये देखकर मै दंग रह गया | उस दिन हम रात 10:00 बजे लौटे |
सॉरी ..., रात 10:00 बजे नहीं शाम 10:00 बजे लौटे ,वहां शाम देर से
होती है |
पब्लिक
ट्रांसपोर्ट – यहाँ
पब्लिक ट्रांसपोर्ट का बहुत ज्यादा प्रयोग होता है, जिसमे हाइटेक बसें और ट्राम का उपयोग होता है | टू-वीलर बहुत कम दिखाई देते है | साईकल बहुत प्रचलन
मे है , उसके लिए अलग से ट्रैक बना होता है | पर्यावरण और नैसार्गिक सुंदरता को बनाए रखने के लिए हमे इनसे सीखने की जरूरत
है |
नार्वे
की यात्रा -
दिनांक 03 जून 2017 को हम बस द्वारा नार्वे पहुंचे | रास्ते मे हरियाली और खुली
खुली सड़के देखकर मन प्रसन्न हो गया | जब हम ओस्लो ( नार्वे
की राजधानी ) बस अड्डे पहुंचे और जैसे ही बस रुकी , मेरे पास
एक यंग लेडी आई और उसने मुझसे कुछ पूछा लेकिन मेरी समझ में कुछ नहीं आया क्योकि
इंग्लिश अच्छी आती नहीं और स्वीडिश मे जानता नहीं था , मै ‘ नो ’ कहकर बस से उतर गया | मैंने सोचा कि जैसे हमारे यहाँ हिल स्टेशन मे पहुँचते ही टुरिस्ट वाले
होटल के लिए या घुमाने के लिए आते है , वैसा ही कुछ कहा होगा
इसलिए मैने ‘ नो ’ कहा |
मनोहर
मेरे पास भागकर आया और कहा कि तूने पुलिस वाली लेडी से क्या कह दिया बहुत गुस्से
मे थी | तभी यंग
लेडी पुनः आई और मेरा पासपोर्ट और रिटर्न टिकिट चेक किया और फिर जाने को कहा |
मनोहर ने
कहा – बेटा , आज
तो बच गए वरना थाने मे होते अभी |
मैने सोचा
कि बिना सोचे समझे बिलकुल नहीं सोचना चाहिए |
पेरिस
और स्विट्ज़रलैंड की यात्रा - नार्वे से आने के बाद हमारा टूर
दिनांक 05 जून 2017 से 09 जून 2017 तक ‘स्टार टूर ‘ से पाँच देशो का बुक था जिसमे बेल्जियम , जर्मनी , फ्रांस ,
स्विट्ज़रलैंड और नीदरलैंड थे | स्विट्ज़रलैंड पहुँच कर ऐसा
लगा कि ये वास्तव मे धरती पर स्वर्ग है | स्विट्ज़रलैंड, बॉलीवुड
के मशहूर फ़िल्मकार यश
चोपड़ा जी की मनपसंद जगहों मे से एक है | उन्होंने अपनी ज्यादातर फिल्मो की शूटिंग यही की है । यहाँ यश चोपड़ा जी का स्टेचू भी है | स्विट्ज़रलैंड की बॉलीवुड में पहचान बनाने में उनकी फिल्मों का
बहुत बड़ा योगदान है ।
पर्यावरण को बिना नुकसान पहुचाये कैसे
टूरिज्म को बढ़ाया जा सकता है , ये
यहाँ से सीखने वाली बात है ।
दिनांक 08.06.2017 को हम फ्रांस की राजधानी पेरिस पहुंचे ।
एफिल टावर में टॉप पर पहुंचने पर एक रोमांचकारी खुशी का अनुभव हुआ ।
रात को पेरिस शहर के दर्शन और रोशनी में नहाया हुआ एफिल टावर अदभुद लगता है
। दिनांक 09.06.2017
को पेरिस एयरपोर्ट से नीदरलैंड होते
हुए गूटेनबर्ग वापस आ गए।
डेनमार्क यात्रा - दिनांक 11.06.2017 को हम डेनमार्क पानी के जहाज द्वारा गए
। उस पानी के जहाज में रेस्तरां , शॉपिंग मॉल और कैसीनो सभी कुछ था । डेनमार्क में हमने साईकल
किराये पर लेकर समुद्र बीच तक साइकिलिंग की । यह भी एक अलग अनुभव था ।
दिनांक 13.06.2017 को वापसी की फ्लाइट थी जो हेलसिंकी होते
हुए दिल्ली जानी थी ।
हेलसिंकी में फ्लाइट में खराबी आने के
कारण फ्लाइट 5 घंटे
लेट हो गयी जिसके कारण हम दिल्ली लगभग 11 बजे पहुचे । दिल्ली एयरपोर्ट से बाहर
निकलने के बाद 40 डिग्री
तापमान में ऐसा लगा कि हम दूसरी दुनिया मे आ गए है ।
लेकिन
सच्चाई यही थी कि ये ही अपनी दुनिया थी, वो एक सुखद सपना ।
भारतीय खाने की समस्या - वहां रोटी सब्जी , दाल चावल बहुत ही मुश्किल से मिलते है ।
नॉर्वे में शाम को मैंने मनोहर से कहा - यार भूख लग रही है यहां नॉनवेज
खाना तो रिस्की है कुछ वेज खाते है ।
मनोहर
ने कहा - ठीक है चीज़ बर्गर खाते है वो ठीक होगा ।
वो
तुरंत एक चीज़ बर्गर ले आया । मैंने खाना शुरू किया तो कुछ अजीब सा लगा, मैंने सोचा शायद इसका स्वाद ही ऐसा होगा । थोड़ी देर में मनोहर
दूसरा बर्गर ले आया,
मैंने
कहा - यार ये कुछ अजीब सा लग रहा है । मनोहर ने कहा - जरा मुझे इसके
अंदर दिखाना । उसे उसके अंदर कुछ अलग सा लगा वो तुरंत काउंटर पर गया उसने
पूछा कि इसमें चीज़ के अलावा क्या है ।
दुकानदार
ने बताया कि इसमें बीफ मिला है और वह लगभग
सभी में बीफ मिलाते है । जब मनोहर ने मुझे बताया तो मै बर्गर लगभग पूरा खा चुका था । अब मै क्या करूँ, तुरंत वाशबेसिन में गया, उल्टी आने को हुई
लेकिन आई नही । मन अजीब सा हो गया । मैंने मनोहर को गाली दी - साले इतने साल
से यहां रहता है, पहले पूछ नही सकता था ।
मैंने
यह बात फ़ोन से तुलसी को बताई । तुलसी ने कहा - कोई बात नही , आपने जानबूझ कर थोड़ी खाया था । आगे से
ध्यान रखना ।
बात
धीरे धीरे बच्चो के पास से होते हुए माँ के पास पहुँच गयी । उसका दुष्परिणाम यह
हुआ , जब में घर पहुंचा तो
माँ ने कहा -भैंसा खाकर आया है जब तक गंगा में स्नान ना कर ले तब तक पूजा मत करना
।
दो सप्ताह बाद ऋषिकेश में गंगा जी मे
तीन डुबकी लगाकर अपने
पाप का प्रयाश्चित किया ।