Saturday, October 12, 2019

Valley of Flowers

                                               Valley of Flowers ( फूलों की घाटी) 

उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है | यह ऋषि मुनियों की तपोभूमि भी रही है  | यहाँ अनेको  प्रसिद्ध मंदिर जैसे बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री , यमुनोत्री , जागेश्वर धाम है  और हरिद्वार और ऋषिकेश जैसे  प्रसिद्ध  तीर्थस्थल भी है | इसके अलावा नैनीताल , मंसूरी जैसे अनेको हिल स्टेशन भी है |
यदि आप प्रकृति  प्रेमी ( Nature Lovers )  और साहसिक प्रेमी ( Adventure  Lovers  ) है और प्रकृति को करीब से देखना चाह्ते है , महसूस करना चाहते है तो वैली ऑफ़ फ्लावर्स यानि फूलों की घाटी आपके लिए एक बेहतरीन जगह हो सकती है |
फूलों की घाटी जाने के लिए आपको लगभग 28 km की ट्रैकिंग  करनी पड़ती है |

फूलों की घाटी, उत्तराखंड के चमोली जिले में  जोशीमठ  के पास  स्थित है, जो ऋषिकेश के उत्तर में लगभग 300 किमी दूर है। यह एक खूबसूरत राष्ट्रीय उद्यान है, जो पश्चिमी हिमालय की सुंदरता को दर्शाता है। फूलों की घाटी की खोज 1931 में की गई थी और यह सफेद चोटियों से घिरे अपने अनेको फूलों  के लिए एक विश्व धरोहर स्थल है।
फूलों की घाटी जाने के लिए दिल्ली से पहले ऋषिकेश , फिर जोशीमठ होते होते गोविंदघाट तक बस या टैक्सी द्वारा पहुंचा जा सकता है | ट्रेन  द्वारा  ऋषिकेश तक और हवाई जहाज द्वारा देहरादून तक जाया जा सकता है |
प्राइवेट  गाड़ी केवल गोविंदघाट तक ही ले जाई जा सकती है  |   गोविन्दघाट से पुलना तक लगभग 4 km   जीप / टैक्सी द्वारा जाया जाता है |  उसके बाद 10 km  की ट्रैकिंग  करके आप घांघरिया पहुंचेंगे | वहां पर होटल में  रहने की व्यवस्था है |
घांघरिया से लगभग 4 km की ट्रैकिंग  के बाद आप फूलों की घाटी में पहुँचते है | यह 87.50  वर्ग किमी  के विस्तार में फैला है और यह लगभग 8 किमी लंबा और 2 किमी चौड़ा है | फूलों की घाटी में प्रवेश के लिए प्रवेश शुल्क रु 150/=  है |

यात्रा का सबसे अच्छा समय इस बात पर निर्भर करता है कि आप क्या देखना पसंद करते हैं और आप कितने ROUGH & TOUGH  हैं। आपको जुलाई और अगस्त में फूलों की अधिकतम संख्या मिलेगी।















Sunday, August 18, 2019

फोटो में मैँ

                                        फोटो  में   मैं  


बच्चे बूढ़े और जवान , फोटो खिचवाने का शौक़, किसे नहीं होता है ?
शायद सभी को होता है | जब LIC में मेरी पहली नौकरी लगी , वैसे नौकरी अभी भी वही है , तो पहली सैलरी मिलने पर सबसे पहले मैं और जीतू  ( जिसने मेरे साथ LIC में ज्वाइन किया था )  टू इन वन ( टेप रिकॉर्डर ) और कैमरा ( Yashika  MF 2 ) लेने गए |  सन 1990 की बात है तब गाँव में यह सब होना बड़ी बात थी , और गाँवों का पता नहीं ,पर हमारे गांव में बड़ी बात थी | 

जब आप ग्रुप में फोटो खिचवाते हो,  तो फोटो में सबसे पहले अपनी फोटो देखते हो और फिर कह ही देते हो , यार , मेरी तो अच्छी नहीं आयी है |  
 उस समय फोटो खींचना एक महंगा शौक हुआ करता था | कैमरे में एक रील डाली जाती थी , फिर उसको डेवलप कराकर उसका प्रिंट निकाला जाता था | फ़ोटो बढे ध्यान से खींची जाती थी ताकि खराब न जाये । आजकल फ़ोटो खराब होने का कोई चक्कर ही नही है । मैमोरी कार्ड में फ़ोटो खींची जाती है , तुरंत देखो, पसंद न आये या खराब खिंचे तो तुरंत डिलीट कर दो । पहले फ़ोटो प्रिंट निकलने के बाद ही देख पाते थे ।
ऐसे में फ़ोटो बहुत सम्भल कर खींचना पड़ता था । 

फोटोग्राफी एक महंगा शौक हुआ करता था | मेरे को फोटो खींचता देख कर , लोगों ने मुझसे  फोटो खींचवाना  शुरू कर दिया , और हां मैं फोटो के पैसे भी लेता था , एक फोटो में मुझे लगभग 4 से ₹5 बच जाते थे और उससे कुछ फोटो का खर्चा निकल जाता था | इस तरह मुझे फोटो खींचने का शौक शुरू हुआ | 

लोग  फोटो की तारीफ करने लगे | तब इंटरनेट और गूगल का ज़माना नहीं  था कि तुरंत  गूगल खोला और जो सीखना है , सीख  लिया | उस समय केवल किताबे ही हुआ करती थी | मैंने एक ट्रिक फोटोग्राफी की किताब भी खरीदी थी | उसमे एक फोटो में डबल रोल ( दो समान फोटो ) ,  एक हाथ में किसी आदमी को उठाते हुए या किसी बिल्डिंग की चोटी में हाथ रखना आदि तरह तरह के प्रयोग किताब से सीखकर किया करता था  | 

मैंने जब नया नया बजाज चेतक स्कूटर ख़रीदा तो उस समय बजाज कंपनी वालों ने एक फोटो कम्पटीशन निकाला , उसमे बजाज स्कूटर को दिखाते हुए फोटो खींचनी थी | मैंने कई तरह से फोटो खींचे लेकिन बात जम नहीं रही थी | मुझे एक अच्छे फोटो के लिए , एक अच्छे मॉडल लड़की की जरुरत थी लेकिन गांव में मॉडल लड़की कहाँ से मिलती |  गांव में लड़कियां भी थी तो वो फोटो खिचवाने के लिये  तैयार नहीं थी |  

मैं थोड़ा परेशान सा हो गया कि एक कम्पटीशन के लिए एक अच्छी फोटो नहीं खिंच पा रही थी  | फिर मैंने अपनी मुँहबोली बहन को तैयार किया फोटो के लिए | उसने मुझे अपना भाई बनाया हुआ था , हमारी कोई बहन नहीं थी।  गांव में जिसकी बहन नहीं होती थी,  तो कुछ लड़किया उन्हें अपना भाई बना लेती थी और रक्षाबंधन के दिन राखी बाधंती थी , नहीं तो  रक्षाबंधन के दिन सूनी कलाई होना बुरा माना  जाता था | जब हम छोटे थे तो माँ राखी बांधा करती थी और 
कहती थी "आज के दिन राखी जरूर बांधी जाती है, भगवान रक्षा करते है " 

फिर मैने मॉडल और स्कूटर को लेकर ,कई फोटो खींचे और सबसे अच्छी तीन फोटो मैंने कम्पटीशन में भेजी, लेकिन प्राइज़ नहीं मिला और  ये फोटो मेरी एलबम का हिस्सा हो गयी |   

कुछ साल बाद डिजीटल कैमरे आये | इन कैमरों ने फोटोग्राफी की दुनिया में तहलका मचा दिया | इसमें मेमोरी कार्ड होता था जिसमे जितनी चाहे मर्जी फोटो खिंच लो और पसंद ना आये तो तुरंत डिलीट मार दो , इससे पैसे तो बचते ही थे और केवल अच्छी फोटो ही प्रिंट होती थी | 

एक बार मैं  मुंबई घूमने गया तो वहां से सोनी (SONY ) का ड़िजिटल कैमरा ले आया | पत्नी ने पूछा " मुंबई से मेरे लिए क्या लेकर आये ?" 
 " केवल एक कैमरा लेकर आया हूँ , पैसे बचे नहीं , इसीलिए तुम्हारे लिए कुछ नहीं ला पाया  " मैंने  पत्नी से नज़रें चुराते हुए कहा  | 
साल भर पुरानी  बीबी का मैं कोपभाजन का हिस्सा बिलकुल नहीं बनना चाहता था | 
" सॉरी  .. अगली बार एक अच्छी साड़ी लेकर आऊँगा "  कहकर मनाने का प्रयास किया लेकिन धर्मपत्नी जी कितने दिनों बाद मानी , मुझे याद नहीं है | इस कैमरे ने कई बार हमारे बीच दरार पैदा की | 
पत्नी अक्सर कहती " इतना महंगा कैमरा ले आएंगे लेकिन एक इकलौती बीबी के लिए एक साड़ी लानी  हो तो , नानी याद जायेगी "  

ख़ैर , इतने ताने सुनने के बाद भी फोटो का शौक़ बदस्तूर जारी था। अब एक समस्या और थी , वह यह कि अब कैमरे का मेगापिक्सेल कम लगने लगा था। मेगापिक्सेल एक प्रकार से कैमरे की  क़्वालिटी बताता है।  जब कैमरा ख़रीदा था जब इस चीज़ की जानकारी नहीं थी और सच कहूं तो इतने पैसे भी नहीं थे।  

 एक बार जब मैं  दिल्ली  गया तो चांदनी चौक फ़ोटो वाली गली ( मार्केट ) से  12  मेगापिक्सेल का फूजीफिल्म कैमरा ले लिया लेकिन इस बार पत्नी के लिए सूट लेना नहीं  भूला।  लेकिन ....       
" आपको आज तक ये नहीं पता कि मुझे कौन से कलर का सूट पसंद है  और इसका कपड़ा भी कुछ खास नहीं है " पत्नी अपनी चिरपरिचित नाराजगी वाले अंदाज़ में बोली।   
" कैमरा तो आपका काफ़ी महंगा लग रहा है और पिछले वाले कैमरे का क्या किया ?  कैमरों की दुकान लगाओगे क्या ? "  पत्नी ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी।  
मैं दाएं बाएं देखकर बात टालने की कोशिश कर रहा था और सोच रहा था कि ये कैमरे  की लगन हमारे गृहस्थ जीवन में और कितना अगन (आग) लगायेगी ।  

एक बार जब मैं ऑफिस से घर पहुंचा तो पत्नी  का रौद्र रूप देखकर मैं डर गया।  कमरे में फ़ोटो के टुकड़े बिखरे हुए थे।  
मैंने डरते डरते पूछा " क्या हुआ ? "
पत्नी बोली " कौन है ये चुड़ैल ? " 
टुकड़े टुकड़े फोटो की तरफ इशारा करते हुए बोली।  
जब मैंने फटी हुई फोटो ध्यान से देखी तब पूरी बात मेरी समझ में आयी। 
दरअसल पत्नी जी एलबम में पुरानी फ़ोटो देख रही थी , उसमें मेरी बजाज चेतक वाली फोटो जिसमे मेरी राखी वाली बहन के साथ फोटो थी और जिसे पत्नी जी ने कभी देखा नहीं था , दरअसल उसकी शादी मुझसे कई साल पहले हो गयी थी , उसके बाद उसकी राखी आनी बंद हो गयी थी।  कई बार शादी के बाद सगी  बहनें  भी सगे भाइयो को राखी बांधने नहीं जा पाती है, वैसे आजकल सरकार ने रक्षाबंधन के दिन लेडीज के लिए बस फ्री कर दी है ।  
 मैं सोचने लगा , जो फ़ोटो कम्पटीशन में क़्वालीफाई  तो नहीं कर पायी थी , वो आज घर में आग जरूर लगा गयी।  
एल्बम के टुकड़े तो हो  चुके थे,  उसका अफ़सोस उस समय कर पाने की स्थिति में,  मैं नहीं था। इस गर्म माहौल को शांत करने के लिए कितनी दुहाई देनी पड़ी होगी शायद आप इसका अंदाजा न लगा पायें। जब मैंने फोटो और कैमरे के प्रति अपना पागलपन साबित किया तब कही जाकर धीरे धीरे पत्नी के ज्वालामुखी का लावा शांत हुआ।

शादी के दो तीन साल बाद बीबी मेरे इस फोटोग्राफी के पागलपन को समझने लगी थी।  जब कभी हम एलटीसी (L.T.C. ) पर घूमने जाते ,  मैं अपना कैमरा ले जाना कभी नहीं भूलता।  एलटीसी को ऑफिस द्वारा दिया गया एक उपहार मानता हूँ।  जब मेरी नौकरी लगी तब किसी ने बताया कि यहाँ  एलटीसी भी मिलती है यानि घूमने के पैसे मिलते है, दो साल में एक बार । सच बताऊँ , उस समय मुझे तनख़्वाह से ज्यादा  एलटीसी अच्छी लगी। 
घूमने से ज़्यादा मुझे नयी जगह फोटो खींचने में ज्यादा मजा आता था।  मैं घूमने की जगह के साथ-साथ बीबी की फोटो भी खूब खींचता।  
" अब थोड़ा सा जरा साइड में देखो,  थोड़ा सा सामने देखो , अब  एक बार चश्मा पहनकर दिखाओ ...... "  मैं कहता जाता। 
पत्नी परेशान होकर कहती " अब हो गया , मैं अब नहीं खिचवाऊँगी "  
" अब चलो , शॉपिंग भी तो करनी है "  थोड़ा जोर  देकर कहती। 
मैं सोचता अगर बीबी की जगह मॉडल होती तो वह कहती  " एक और .... एक इस पोज में  भी  ....... "   
यहाँ पर थोड़ा डिफरेंस लगा, मुझे बीबी और मॉडल में। 

कुछ वर्ष बीतने के बाद एक दिन पत्नी जी ख़ुशी से चिल्लाते हुए बोली 
" देखो , अख़बार में  क्या आया है ? "
मैंने उत्सुकतावश देखा कि 'वर्ल्ड फ़ोटोग्राफ़ी डे ' के दिन  फोटो कम्पटीशन निकला है।  
" तुम इतनी सारी अच्छी फोटो खींचते हो,  एक अच्छी फोटो भेज क्यों नहीं देते कम्पटीशन में "  पत्नी चहककर बोली। 
पत्नी के मुहँ से अपनी फोटो की तारीफ़  सुनकर ऐसा लगा कि मेरा जीवन सफल हो गया है। उस समय  मेरी पत्नी मुझे किसी परी से कम नहीं लग रही थी, जो आपकी हर इच्छा पूरी करती है।
 ये ही फोटो कम्पटीशन शादी के पहले साल में तलाक का कारण बनते बनते बचा और आज शादी के 10 साल बाद मेरा हुनर बन गया। 

मैंने अपनी पांच - छह  फोटो छांट कर  कम्पटीशन में भेज दी | मझे एक दिन पत्र प्राप्त हुआ कि आपकी फोटो कम्पटीशन में सेलेक्ट हो गयी है और वर्ल्ड फोटोग्राफी डे की दिन आपको प्राइज दिया जायेगा,  पर ये नहीं बताया था कि कौन सा प्राइज मिलेगा। पत्नी खुश होकर बोली " देखो मुझे पता था कि तुम्हे प्राइज जरूर मिलेगा।  "  वास्तव में अपनी ख़ुशी में पत्नी की ख़ुशी देखकर मुझे भी बहुत ख़ुशी हुई।  

पत्नी , मैं और दोनों बच्चे हम सब समय से पहले FRI देहरादून के बड़े से हॉल में पहुँच गए।  वहां पर  मुख्यमंत्री श्री विजय बहुगुणा द्वारा सम्मानित किया जाना था।  हम सब इस उम्मीद में थे कि  फर्स्ट प्राइज मुझे ही मिलेगा और जब मुझे मुख्यमंत्री द्वारा प्राइज दिया जायेगा तो मुझसे कुछ बोलने के लिए कहा जायेगा जिसकी तैयारी , मैं घर से करके आया था। 
" आज मुझे जो प्राइज मिला है , उसकी असली हक़दार मेरी पत्नी है , उसके बिना यह संभव नहीं था।  " 
बीबी ने कई बार कहा  कि मेरा नाम मत लेना, लेकिन मैं तो यही एक डायलॉग याद करके गया था।  
मुझे आज भी याद है उस हॉल में बैठकर ऐसी फीलिंग हो रही थी जैसे मुझे ऑस्कर मिलने वाला है।  मैंने यह बात बच्चों से भी कही। 
 बच्चे बोले " पापा , ऑस्कर भी मिलेगा  पहले ये तो मिल जाये "
पहले फर्स्ट प्राइज की घोषणा  हुई , मेरा नाम नहीं आया। 
फिर सेकंड और थर्ड में भी नहीं आया।  मुझे सांत्वना पुरुस्कार (Consolation  Prize ) मिला। 
लेकिन मुझे इस बात की बेहद ख़ुशी थी  कि लगभग 500 एंट्रीज़ में  मुझे पहली बार किसी फोटो कम्पटीशन में सांत्वना पुरुस्कार मिला। 

और जो ऑस्कर वाली  फीलिंग हुई , उसको मैं बयां नहीं कर सकता।   



         


Wednesday, February 6, 2019

पलायन - एक समस्या

 Migrations - a problem

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पलायन आज उत्तराखंड की एक प्रमुख समस्या बन चुका है |

एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले 10  सालो में लगभग 700 गांव खाली हो चुके है और 3.83 लाख से ज्यादा लोग घर छोड़कर जा चुके है  |  


पलायन के कई कारण है,  जिसमें नौकरी की तलाश, बच्चों की अच्छी 
पढ़ाई लिखाई , बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं , बेहतर जीवन शैली आदि प्रमुख है | 

इस समस्या पर डाक्यूमेंट्री फिल्म -

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