Tuesday, November 28, 2023

ख़ुशी

                              *ख़ुशी *

चमकते बदलो से,

              गुनगुनाती ठंड में 

                                   उतर कर आयी एक परी, 

मख़मली बालों सी , 

              कमल के गालों सी 

                           चाँदनी सी प्यारी , नाम था ख़ुशी ,

पुलकित हृदय , जगमगायें रौगतें

                   सृष्टि की सारी रचनाएँ , थी उसमें छुपी , 

नन्ही सी बूँद की तरह, विशाल सागरो में , 

                          सृष्टि की अद्वितीय थी तुम रागिनी , 

माँ की मुस्कान , पिता का अभिमान , 

                      भगवान की कृपा का प्रतीक थी तुम ख़ुशी , 

धूप में छाया बन , मेरी राहो का सहारा , 

               आशीर्वाद बनी , अब है ये सच कितना , 

पर समझाये मुझे , तू क्यों भूल गई 

               मासूमियत में , कैसे हो जाता है गिला, 

छोड़ा मैंने सब कुछ तेरे लिए , 

                फिर क्यों इस दिल को, दिया तूने सजा,

खुदा की दुआओं में, तेरा नाम था हर पल,

                  ख़ुशी , क्यों बनी तू, मेरे दिल की खता, 

मेरे सपनों को, तूने कैसे तोड़ा,

     ख़ुशी, तू मेरी ज़िन्दगी की कहानी थी, क्यों भूला।

Saturday, November 4, 2023

चलो अमेरिका

                                                चलो अमेरिका 

नैनीताल जिले की एक छोटी सी तहसील थी किच्छा जो अब उधम सिंह नगर जिले में है । उसके आस पास कई छोटे छोटे गांव थे उनमें से एक गांव था खुर्पिया फार्म । कोई सेठ तुलसी दास थे जिन्होंने सरकार से यह फार्म 99 साल की लीज पर लिया था । यह लगभग 2000 एकड़ का फार्म था , इसमे लगभग 600 वर्कर्स काम करते थे। इसके आस पास देवरिया, बंदिया, शांतिपुरी आदि गांव थे । एक छोटा सा स्कूल था,  जिसमें खुर्पिया फार्म के वर्कर्स के बच्चे और आस पास के गांव के बच्चे पढ़ने आते थे । 

पूरे गांव में एक ही दुकान हुआ करती थी चंचल की दुकान । यह दुकान सबकी मीटिंग पॉइंट हुआ करती थी । दुकान के पास एक चबूतरा हुआ करता था सब शाम को वहां बैठा करते थे और पूरे गांव की चर्चा यहां पर होती थी । पूरे गांव का समाचार यहां से मिल जाता था और हाँ पूरे गांव में केवल एक ही न्यूज़ पेपर आता था वह भी चंचल की दुकान में नाम मुझे अभी भी याद है  अमर उजाला ।

मैंने बचपन से पेपर पढ़ना यही से सीखा , बाकी खबरें तो याद नही लेकिन एक खबर याद है इमेरजेंसी की खबर , उसमे से भी सबकी नसबंदी की खबर । क्योकिं गांव में चर्चा होती रहती थी कि अब फलां आदमी की नसबंदी हो गयी है और वो बधिया हो गया है । तब उसका मतलब समझ में नही आता था ।

देश विदेश की खबरें उस अमर उजाला से ही मिलती थी । तब अमेरिका के बारे में स्कूल में ही पढ़ा था या फिर न्यूज़ पेपर में पड़ते थे । उसके बारे में इतना जरूर जानते थे कि जब हमारे यहां दिन होता है तो वहां रात होती है । यह सब  पृथ्वी के घूमने के घूमने के कारण होता है ऐसा साइंस में पढ़ा था। पृथ्वी घूमने से हम क्यों नही घूमते है,  तब ये नही पता था ।

चबूतरा हमारा सोशल लाइजिंग का बहुत बड़ा केंद्र था । वहां बच्चे से लेकर बूढ़े तक आकर बैठा करते थे । यहां पर बैठे बैठे बाघ बकरी गेम खेला करते थे ।

गांव में जो बाकी गेम थे गुल्ली डंडा ,क्रिकेट , लबड़ हत्ता, तीपोलिया, आइस पाइस, पिड्डू, कंचे । बड़ा मजा आता था ये सब गेम खेलने में । 

यही हमारी दुनिया थी स्कूल जाना और खेलना । 

बचपन से पढ़ने में मैं होशियार था, शायद में अपने क्लास में फर्स्ट आता था इसीलिए लोग कहते होंगे । 

मोहन लाल मासाब को जरूर याद करूँगा, जिन्होंने बचपन में मेरी पढ़ाई की नींव मजबूत रखी । वो हमारे घर में स्कूल के बाद बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते थे मुझे फ्री में । एक बार उन्होंने मेरे पिताजी से कहा कि मुझे कक्षा 4 से सीधे 6 में रख देते है बच्चा पढ़ने में होशियार है एक साल का फायदा हो जाएगा । पिताजी पढ़े लिखे नही थे उन्होंने इस बात को कोई तबज्जो नही दी ।

राम चन्दर मुझसे सीनियर था और पढ़ने में बहुत होशियार था वह भी अपने क्लास में फर्स्ट आता था । एक प्रकार से वह मेरे लिए आदर्श था । स्कूल किताब के अलावा 

अन्य किताबे जैसे चम्पक, चंदामामा, सरिता, गृहशोभा, चाचा चौधरी, राम रहीम आदि पढ़ना उसने ही सिखाया । स्कूल की किताब से निकलकर अन्य जानकारी मुझे इन किताबो से ही मिली । किताबें पढ़ना मुझे अच्छा लगने लगा । 

एक दिन राम चन्दर ने कहा कि उपन्यास पढ़ों उसमे ये लगता है कि सामने फ़िल्म चल रही है , फिर वेद प्रकाश, कर्नल रंजीत के उपन्यास मांगकर या किराये पर लाकर खूब पढ़े ।

हमारे लिए मनोरंजन के साधन खेलना और किताबे पढ़ना। तब टीवी नही हुआ करते थे । पहला टीवी फार्म मैनेजमेंट ने लगवाया उसे देखने पूरा गांव आया था वह सीन मुझे आज तक याद है , उसमे फ़िल्म आयी थी  - देख कबीरा रोया । पूरी फिल्म में एक आदमी टीवी का एंटीना घुमाते रहा । फ़िल्म तो याद नही रही लेकिन टीवी पहली बार देखा था और टीवी का एंटीना घुमाना आज भी याद है ।

केसर जूनियर स्कूल केवल कक्षा 8 तक ही था । उसके बाद हमे पढ़ने किच्छा, शांतिपुरी या रूद्रपुर जाना होता था । 

किच्छा पास था लेकिन वहां पर एक ही इंटर कॉलेज था जनता इंटर कॉलेज । एक तो वहाँ साइंस साइड नही थी और कॉलेज थोड़ा बदनाम भी था ।

सबने दिमाग में डाल रखा था कि साइंस साइड ही लेना । होशियार बच्चे साइंस साइड ही लेते है और वो ही डॉक्टर, इंजीनियर बनते है । हमारे गांव से प्यारे भाई साहब जिन्होंने साइंस साइड ली थी इंजीनियर बन गए थे उनकी माँ ने उनकी पढ़ाई के लिए सपने सारे जेवर बेच दिए थे , ऐसा गांव में चर्चा थी । मेरी माँ के पास तो जेवर भी नही थे कुछ साल पहले घर से चोरी हो गए थे ।  

खैर, होधियार बच्चे साइंस लेते है , इसीलिए शांतिपुरी मे कक्षा 9 में दाखिला ले लिया । 

खुर्पिया के चबूतरे में  सोशलाइज़िंग के साथ साथ मदारी, नुक्कड़ आदि भी हुआ करते थे । 

एक नुक्कड़ आज भी  मेरे जेहन में है । एक अंधा आदमी गाकर एक प्रेम कहानी सुनाता है । एक लड़का एक लड़की से बेहद प्यार करता है , वह लड़का अपनी प्रेमिका से कहता है कि वह उसके लिए कुछ भी कर सकता है । लड़की कहती है मुझे तुम्हारी माँ का दिल चाहिए । लड़का अपनी माँ से यह बात कहता है कि वह लड़की से बेहद प्यार करता है और उसने आपका दिल मांगा है । माँ लड़के के प्यार की खातिर अपना दिल चीर कर लड़के को दे देती है । लड़का जब माँ का दिल हाथ में लेकर अपनी प्रेमिका को देने जा रहा होता है तो रास्ते में उसे ठोकर लगती है और माँ का दिल लड़के के हाथ से गिरकर नीचे गिर जाता है , तब माँ के दिल से आवाज आती है बेटा तुझे चोट तो नही लगी । 

खुरपिया फार्म यह गाँव ही हमारी दुनिया थी । हम नैनीताल जिले में जरूर रहते थे लेकिन कभी गए नहीं थे । सुना था वहाँ एक बहुत बड़ी झील है और बादल धरती पर चलते है । सोचते थे कैसा लगता होगा । येसा ही अमेरिका के बारे में सोचते थे वहाँ कैसा होगा लोग कैसे होंगे ? कैसे रहते होंगे ?  वहाँ जाने के बारे में कभी नहीं सोचा । सोचते भी कैसे कभी कस्बे से बाहर गए नहीं थे ट्रेन तक में बैठे नहीं थे , हवाई जहाज में बैठने के कैसे सोचते । 

कक्षा 7 और 8 में आते आते मैं नायक बन गया था । हमरे यहाँ कक्षा 6 से स्काउट और गाइड के ट्रेनिंग और एक्टिविटी होती थी , इसमे मुझे पहले टोली नायक फिर दल नायक बना दिया था । मैं अपने पूरे स्कूल के रेप्रेजेंट करता था । 

अब नायक जब शांतिपुरी कक्षा 9 मेँ दाखिला लेता है, तो उसे उसकी प्रतिभा को देखकर उसे पूरे collage मेँ  सुबह होने वाली प्रार्थना और शपथ की ज़िम्मेदारी भी उसको दे दी जाती है । नायक को इस ज़िम्मेदारी से कोई डर नहीं था पर परेशानी यह थी की नायक को खुरपिया फार्म से शांतिपुरी न॰ 1 स्कूल लगभग 12 किमी दूर था और नायक को रोज साइकल से आना जाना पड़ता था और सुबह प्रार्थना करवाने के लिए स्कूल जल्दी आना जरूरी था । नायक के पास साइकल भी नहीं थी वह साथ वालों से साथ साइकल मेँ doubling करके जाता था । doubling मेँ साइकल दोनों लोगो को पेंडल मारने होते है ।