चमकते बदलो से,
गुनगुनाती ठंड में
उतर कर आयी एक परी,
मख़मली बालों सी ,
कमल के गालों सी
चाँदनी सी प्यारी , नाम था ख़ुशी ,
पुलकित हृदय , जगमगायें रौगतें
सृष्टि की सारी रचनाएँ , थी उसमें छुपी ,
नन्ही सी बूँद की तरह, विशाल सागरो में ,
सृष्टि की अद्वितीय थी तुम रागिनी ,
माँ की मुस्कान , पिता का अभिमान ,
भगवान की कृपा का प्रतीक थी तुम ख़ुशी ,
धूप में छाया बन , मेरी राहो का सहारा ,
आशीर्वाद बनी , अब है ये सच कितना ,
पर समझाये मुझे , तू क्यों भूल गई
मासूमियत में , कैसे हो जाता है गिला,
छोड़ा मैंने सब कुछ तेरे लिए ,
फिर क्यों इस दिल को, दिया तूने सजा,
खुदा की दुआओं में, तेरा नाम था हर पल,
ख़ुशी , क्यों बनी तू, मेरे दिल की खता,
मेरे सपनों को, तूने कैसे तोड़ा,
ख़ुशी, तू मेरी ज़िन्दगी की कहानी थी, क्यों भूला।
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